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Pakistan Moving From The Current Parliamentary System To The Presidential System - Amar Ujala Hindi News Live - राष्ट्रपति प्रणाली की ओर पाकिस्तान? शक्तिशाली ताकतें अब प्रयोग करना चाहती हैं
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Pakistan moving from the current parliamentary system to the presidential system
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राष्ट्रपति प्रणाली की ओर पाकिस्तान? शक्तिशाली ताकतें अब प्रयोग करना चाहती हैं
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक सांविधानिक याचिका दायर की गई थी, जिसमें प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति शासन की स्थापना के बारे में एक जनमत संग्रह कराने के लिए कहा गया था।
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इमरान खान (फाइल फोटो)
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PTI
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पाकिस्तान क्या मौजूदा संसदीय प्रणाली से राष्ट्रपति प्रणाली की ओर बढ़ रहा है? ऐसी बातें कही जा रही हैं कि संसदीय प्रणाली ने इस देश में लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद नहीं की है और इस व्यवस्था ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है, जो मुल्क को पीछे ले जा रहा है। वर्ष 1958 में एक बंगाली राजनेता शहीद अली पटवारी पूर्वी पाकिस्तान में प्रांतीय विधानसभा के सदस्य थे, जो डिप्टी स्पीकर भी थे। विधानसभा सत्र की कार्यवाही में हंगामे के दौरान एक प्रस्ताव के कारण सदस्यों के आपस में लड़ने से जल्द ही विधानसभा युद्ध के मैदान में तब्दील हो गई। हिंसक सदस्यों के हाथ में जो आया था, वे उसे फेंकने लगे थे।
एक सदस्य ने पेपरवेट उठाकर फेंका, जो दुर्भाग्य से शहीद अली पटवारी के सिर में लगा और वह इतनी बुरी तरह से घायल हुए कि दो दिन बाद अंततः उनका इंतकाल हो गया। अब 2021 में भी इस हफ्ते नेशनल एसेंबली में यह नजारा दोहराया गया, पर गनीमत रही कि किसी की मौत नहीं हुई। सरकार और दो मुख्य विपक्षी दलों-पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) व पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बीच पिछले दो वर्षों से राजनीतिक तनाव जारी है। सदन के नेता इमरान खान शायद ही कभी नेशनल एसेंबली या सीनेट की बैठकों में भाग लेते हैं। उन्होंने शिकायत की है कि विपक्षी सदस्यों द्वारा उन्हें लगातार परेशान किया जाता है।
इस हफ्ते सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने एक हास्यास्पद प्रस्ताव रखा कि अगर विपक्षी दल लिखित में आश्वासन देंगे कि वे निचले सदन की बैठक में खलल नहीं डालेंगे, तभी नेता प्रतिपक्ष शहबाज शरीफ को सदन में सम्मान के साथ सुना जाएगा। विपक्षी दलों ने स्वाभाविक ही इसे खारिज कर दिया। जब वित्त मंत्री शौकत तरीन सालाना बजट पेश करने के लिए खड़े हुए, तब विपक्षी सदस्यों ने इतना हंगामा किया कि प्रेस गैलरी में बैठे लोग भी वित्त मंत्री का भाषण नहीं सुन सके।
फिर जब नेता प्रतिपक्ष शहबाज शरीफ विपक्ष की ओर से बोलने के लिए खड़े हुए, तब सत्ता पक्ष ने बदला लेने का फैसला लिया और इतना शोर मचाया कि कोई भी शहबाज शरीफ को नहीं सुन सका। ऐसा लगातार तीन दिन हुआ और तीसरे दिन तो सदन युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया। सांसद एक दूसरे पर बजट की मोटी कॉपी मिसाइल की तरह फेंक रहे थे। पंजाबी में ऐसे-ऐसे अपशब्द सुनने को मिले कि महिला सांसद शर्मा गईं। सबसे खराब और अक्षम्य आचरण वरिष्ठ मंत्रियों का था, जो गुंडों की तरह बर्ताव कर रहे थे। अपने सदस्यों को रोकने के बजाय वे मेज पर खड़े होकर विपक्षी सदस्यों के साथ गाली-गलौज और मारपीट करने लगे।
अगले दिन नेशनल एसेंबली स्पीकर असद कैसर ने सत्तारूढ़ पीटीआई, पीपीपी और पीएमएल(एन) के सात सदस्यों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा दी। उन्होंने कहा कि जिन सदस्यों को संसद में आने से रोका गया है, उन्हें उनके असंसदीय और अनुचित व्यवहार के लिए माफ नहीं किया जा सकता है। सत्ता पक्ष ने क्या संसदीय प्रणाली को खत्म कर राष्ट्रपति प्रणाली की ओर कदम बढ़ाने की योजना के तौर पर यह नाटक किया? पिछले कुछ समय से इस्लामाबाद में यह कानाफूसी हो रही है कि शक्तिशाली ताकतें अब राजनीति की एक नई प्रणाली के साथ प्रयोग करना चाहती हैं।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक सांविधानिक याचिका दायर की गई थी, जिसमें प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति शासन की स्थापना के बारे में एक जनमत संग्रह कराने के लिए कहा गया था। यह कहना जल्दबाजी होगा कि राष्ट्रपति शासन प्रणाली की दिशा में कोशिश सफल होगी या नहीं। लेकिन पाकिस्तान में अनेक लोग इस सांविधानिक याचिका से सहमत हैं कि, 'हमारी संसदीय प्रणाली में सांसदों को वफादारी बदलने की आदत है और वे अपने निजी हितों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को ब्लैकमेल करते और उन पर दबाव बनाते हैं।' याचिका में कहा गया है कि लोग शासन की संसदीय प्रणाली से ऊब गए हैं और राष्ट्रपति शासन प्रणाली अपनाना चाहते हैं। पाकिस्तान की जनता की बदहाली सीधे तौर पर सरकार की व्यवस्था को दर्शाती है और यह स्थापित हो गया है कि देश में शासन की संसदीय प्रणाली पूरी तरह से विफल है।
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