16 दिसंबर 1971 का विजय दिवस याद आते ही बाह क्षेत्र के हर युवा का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। यह वही दिन है जब हमारे देश के रणबांकुरों ने पाकिस्तान की ढाका, अकोरा, हिल्ली पोस्ट पर तिरंगा फहरा दिया था। पाक पर विजय में बाह के पुरा चौधरी गांव के उदयन सिंह और फतेहपुरा गांव के राज बहादुर सिंह शहीद हुए थे। शहीदों की वीर नारियों का जज्बा देखिए। सुहाग की कुर्बानी के बाद बेटों को देश भक्ति का पाठ पढ़ाया। उन्हें सेना में भर्ती कराया। उनका बलिदान और त्याग युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है।
पुरा चौधरी गांव के वीर सपूत उदयन सिंह 1971 की जंग में शहीद हो गए थे। पति की शहादत के बाद वीर नारी फुल्हानी देवी ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने 12 साल के बेटे अनूप सिंह, 10 साल के बेटे भारत सिंह, 9 साल के सुघर सिंह की परिवरिश की। खेत में हल चलाया। बेटों को पढ़ाया। उन्होंने दो बेटों अनूप सिंह और सुघर सिंह को सेना में भर्ती कराया। अनूप सिंह नायब सूबेदार बने तो सुघर सिंह क्लर्क। अब अपने नातियों को भी सेना में भेजने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
1971 की जंग में पाक बंकर पर तिरंगा फहरा कर अपनी जान कुर्बान करने वाले फतेहपुरा गांव के राजबहादुर सिंह को वीर चक्र मिला। उनकी पत्नी कलावती ने उस वक्त पांचवीं की पढ़ाई कर रहे बेटे रमेश सिंह भदौरिया, तीसरी की पढ़ाई कर रहे सुरेश भदौरिया को संभाला। सेना में भर्ती कराया। उनका नाती दीपक भी सेना में है।
कलावती चाहती हैं कि उनके परिवार की अगली पीढ़ी भी इसी जज्बे के साथ सीमा की प्रहरी बने। वीर चक्र विजेता पति की यादों को सहेजने में सरकार ने दिलचस्पी नहीं दिखाई तो उन्होने गांव में शहीद के नाम पर स्मृति द्वार बनवा दिया है।
1971 के पाक विजय दिवस में रुदमुली के 88 रणबांकुरों ने मोर्चा संभाला था। दुश्मन को खदेड़ने वाले जसकरन सिंह शहीद हुए थे। पाक पर विजय की गौरवगाथा का स्मारक रुदमुली गांव में बना हुआ है। यहां के रणबांकुरों ने चीन, पाक के खिलाफ हर जंग में मोर्चा संभाला है। अपनी कुर्बानी दी है।