pakistani army stopped from capturing srinagar due to women, protest against pakistan in pok,औरतों के चक्कर में श्रीनगर पर कब्जा करने से रह गई थी पाकिस्तानी फौज, भारतीय सेना ने खदेड़ा, POK में प्रदर्शन

औरतों के चक्कर में श्रीनगर पर कब्जा करने से रह गई थी पाकिस्तानी फौज, भारतीय सेना ने खदेड़ा, POK में प्रदर्शन

Authored byदिनेश मिश्र | नवभारतटाइम्स.कॉम 14 May 2024, 2:11 pm

POK Protest Against Pakistan पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में इन दिनों पाकिस्तान के खिलाफ उबाल चरम पर है। जम्मू-कश्मीर के इस इलाके को पाकिस्तान ने जबरन कब्जाया था। पाकिस्तान की साजिश की यह कहानी आजादी के पांच दिन बाद ही शुरू हो गई थी।

हाइलाइट्स

  • अंग्रेजों ने महाराजा गुलाब सिंह को 75 लाख में जम्मू-कश्मीर बेचा था
  • जम्मू-कश्मीर कब्जाने के लिए पाकिस्तान ने चलाया था ऑपरेशन गुलमर्ग
  • कश्मीर के लिए 10-10 हजार के दो लश्कर गुट पाक ने किए थे तैयार
Protest Against Pakistan in POK
पीओके में पाकिस्तान के खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं
नई दिल्ली: 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान बनने के 6 दिन बाद यानी 20 अगस्त को ही पाकिस्तानी सेना ने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' की प्लानिंग की। इस ऑपरेशन के तहत जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने की तैयारी थी। इसके लिए कबायली लड़ाकों को जुटाया गया और पाकिस्तानी फौजों ने उन्हें लड़ने की ट्रेनिंग दी। इस तरह से पाक फौज और मिलिशिया की 10 हजार की फौज तैयार हो गई। इन्हें यह निर्देश दिया गया कि वो जम्मू-कश्मीर पर कब्जा कर लें, जो अभी तक स्वतंत्र देश के रूप में था। इसकी बागडोर महाराजा हरि सिंह के पास थी, जिन्होंने अंग्रेजों के कहने के बावजूद तब तक भारत या पाकिस्तान किसी में भी विलय होना स्वीकार नहीं किया था।
दरअसल, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में कहा है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू-कश्मीर (पीओके) पहले भी भारत का था, आज भी भारत का ही है और आगे भी भारत का ही रहेगा। उन्होंने साफ कहा कि पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है जिसे छुड़ाने के लिए भारत प्रतिबद्ध है। जयशंकर ने कहा, 'पीओके भारत का हिस्सा था,है और हमेशा रहेगा।
Jaishankar on POK

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है


महाराजा हरि सिंह की विलय में देरी के फैसले से पाकिस्तान का एक्शन
दरअसल, भारत की आजादी के वक्त तक देश की सभी रियासतों का भारत में विलय हो चुका था। मगर, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर ने विलय से साफ इनकार कर दिया था। 1947 में कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह भी भारत और पाकिस्तान में किसी में भी अपनी रियासत का विलय नहीं करना चाहते थे। हालांकि, भारत के तत्कालीन अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने उनसे यह साफ तौर पर कहा कि किसी भी रियासत को स्वतंत्र देश नहीं बनाया जा सकता है। उसे भारत या पाकिस्तान में से किसी एक को चुनना होगा। महाराजा के इसी अनिर्णय की स्थिति का पाकिस्तान ने फायदा उठाया और हमले की साजिश रची।
Maharaja Hari Singh

कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय होने में देरी की


10-10 हजार के दो लश्कर गुट तैयार किए गए
डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, 22 अक्टूबर, 1947 को 20 हजार पाकिस्तानी फौजियों और मिलिशिया के गुट को यह निर्देश दिया कि वो मुजफ्फराबाद से उरी जाएं और वहां से बारामुला होते हुए वो श्रीनगर पर कब्जा कर लें। ऑपरेशन गुलमर्ग के तहत इन 20 हजार के गुटों को 20 लश्कर में बांटा गया। हर लश्कर में 1000 पश्तून कबायली लड़ाके होते थे। 10 लश्कर्स यानी 10 हजार लड़ाकों को श्रीनगर और 10 लश्कर्स को जम्मू पर कब्जा करने के लिए भेजा गया।
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श्रीनगर 26 किमी रह गया तो ऐशो-आराम में डूबे लड़ाके
जेएस सोढ़ी के अनुसार, 10 लश्कर यानी 10 हजार कबायली लड़ाकों का गुट पाकिस्तानी फौजों की अगुवाई में श्रीनगर की ओर तेजी से बढ़ी। वो आसानी से 24 अक्टूबर को बारामुला तक पहुंच गए। यहां से श्रीनगर महज 26 किलोमीटर रह गया था। महाराजा की सेना इतनी छोटी थी कि वो इन लड़ाकों का मुकाबला नहीं कर पाए। बारामुला पहुंचने के बाद ये पश्तून लड़ाके यहां की खूबसूरत औरतों के चक्कर में पड़ गए। उनको लगा कि अब यहां से श्रीनगर ज्यादा दूर नहीं है तो यहां पर ऐशो-आराम कर लिया जाए। वो लड़ाके वहां की स्थानीय औरतों का रेप करने लगे। दुकानों को लूटने लगे। इसी में उन सभी ने काफी वक्त बिता दिया। अगर, पाकिस्तानी फौज और कबायली ऐशो-आराम नहीं करती तो कहानी कुछ और होती।
Defence Expert JS Sodhi on Kashmir

विलय के साथ ही भारतीय वायुसेना ने संभाला मोर्चा
इस बीच, महाराजा हरि सिंह को यह सूचना मिली कि पाकिस्तानी फौजों की अगुवाई में 10 हजार कबायली श्रीनगर की ओर बढ़ रहे हैं और उनकी अपनी सेना उनका मुकाबला नहीं कर पाई। और किसी भी वक्त वो श्रीनगर पहुंच सकते हैं। ऐसे में महाराजा ने घबराकर भारत सरकार के साथ 26 अक्टूबर, 1947 को भारत में विलय का समझौता (Instrument of Accession) किया। इसमें यह क्लियर किया गया कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बनेगा। 27 अक्टूबर की सुबह आनन-फानन में भारतीय वायुसेना के जहाजों से आर्मी श्रीनगर पहुंची। भारतीय जवान ट्रकों में भरकर बारामुला पहुंचे और इन 10 हजार लड़ाकों पर काल बनकर टूट पड़े। यहीं से बाजी पलट गई और जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के हाथ में जाने से बच गया।
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कश्मीर बचाने के लिए ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने दी जान
पाकिस्तानी हमले के वक्त कश्मीरी सेना के ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने कश्मीर को पाकिस्तान के हाथों बचा लिया था। महाराजा जब ऊहापोह की स्थिति में थे, तभी पाकिस्तानी कबायली श्रीनगर पहुंचने वाले थे। ऐसे में ब्रिगेडियर सिंह ने उरी से बारामुला और श्रीनगर को जोड़ने वाले पुल को ढहा दिया, जिस वजह से पाकिस्तानी लड़ाके दो दिन तक आगे नही बढ़ पाए। हालांकि, कबायलियों के हमले में ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह शहीद हो गए।

जब नेहरू पहुंच गए संयुक्त राष्ट्र, पीओके बना विवाद
भारतीय सेना ने बारामुला में दौड़ा-दौड़ाकर पाकिस्तानी फौजों और लड़ाकों को मारा। इन्हें उरी के आगे तक खदेड़ दिया गया। सेना लगातार कामयाब हो रही थी। इस बीच देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कश्मीर मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र में पहुंच गए। संयुक्त राष्ट्र से पाकिस्तान को अपने फौजियों को कश्मीर से वापस लेने के लिए कहा। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की तरफ से युद्धविराम का ऐलान किया गया। एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के लिए यूएन का एक मिलिट्री ऑब्जर्वर ग्रुप भी तैनात किया गया।


भारत संयुक्त राष्ट्र नहीं जाता तो पीओके नहीं होता
जेएस सोढ़ी के अनुसार, 5 जनवरी, 1949 को भारत और पाकिस्तान के बीच जंग खत्म हुआ तब तक जम्मू-कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में था। अगर भारत संयुक्त राष्ट्र नहीं जाता तो जम्मू-कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा यानी पीओजेके(पाकिस्तान आक्यूपाईड जम्मू-कश्मीर) पाकिस्तान के कब्जे में नहीं होता। पीओजेके को आमतौर पर पीओके कहा जाता है। क्योंकि भारतीय सेना पाक फौजों को पस्त कर रही थी और उन्हें लगातार पीछे धकेल रही थी।

अंग्रेजों की मदद करने पर गुलाब सिंह को 75 लाख में बेचा जम्मू-कश्मीरलेखक रजत गांगुली की किताब 'इंडिया, पाकिस्तान एंड द कश्मीर डिस्प्यूट' के अनुसार, 1839 में डोगरा राजपूत परिवार के तत्कालीन महाराजा महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू से अपना शासन बढ़ाते हुए लद्दाख और बाल्टिस्तान तक अपना कंट्रोल कर लिया। जिसमें कुछ इलाके उन्होंने तिब्बत से भी छीन लिए थे। आंग्ल-सिख युद्ध के बाद अमृतसर में 26 मार्च, 1846 को एक समझौता हुआ। इसी समझौते से जम्मू-कश्मीर रियासत का जन्म हुआ। गुलाब सिंह डोगरा को युद्ध में ब्रिटिश शासन के प्रति लॉयल्टी दिखाने के चलते उन्हें महज 75 लाख रुपए में जम्मू-कश्मीर को बेच दिया गया। तब से लेकर 1947 तक यह महाराजा के ही वंशजों के शासन में रहा।
दिनेश मिश्र
लेखक के बारे में
दिनेश मिश्र
दिनेश मिश्र, NBTऑनलाइन में असिस्टेंट एडिटर हैं। 2010 में दैनिक जागरण से पत्रकारिता की शुरुआत की। बीते 14 साल में अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रिंट, टीवी और डिजिटल तीनों का अनुभव हासिल किया। पर्सनल फाइनेंस, पॉलिटिकल, इंटरनेशनल न्यूज, फीचर जैसी कैटेगरी में एक्सप्लेनर और प्रीमियम स्टोरीज करते रहे हैं, जो रीडर्स को सीधे कनेक्ट करती हैं।... और पढ़ें
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