भारत ईरान ने मतभेद भुलाकर किया ये अहम समझौता, चीन पाकिस्तान पर क्या असर

नरेंद्र मोदी और इब्राहिम रईसी

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भारत और ईरान ने सोमवार को एक ऐसा समझौता किया है, जिसे पाकिस्तान और चीन के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है.

भारत और ईरान ने ये समझौता चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए किया है.

शाहिद बेहेस्ती ईरान का दूसरा सबसे अहम बंदरगाह है.

ये समझौता इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ ईरान के बीच हुआ है.

भारत के जहाज़रानी मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने ईरान पहुंचकर अपने ईरानी समकक्ष के साथ इस अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

पाकिस्तान और चीन ईरानी सरहद के क़रीब ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहे हैं. भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को जोड़ने वाले चाबहार पोर्ट को ग्वादर पोर्ट के लिए चुनौती के तौर पर देखा जाता है.

लंबी अवधि का ये समझौता दस साल के लिए है और इसके बाद ये ख़ुद ही आगे बढ़ जाएगा.

साल 2016 में ईरान और भारत के बीच शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए समझौता हुआ था. नए समझौते को 2016 समझौते का ही नया रूप बताया जा रहा है.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि इस समझौते से पोर्ट में बड़े निवेश का रास्ता खुलेगा.

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समझौते के बारे में भारत ने क्या बताया?

विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, ये समझौता क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशिया के लिए रास्ते खोलेगा.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, इस समझौते के तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड क़रीब 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी. इस निवेश के अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की जाएगी. इससे ये समझौता क़रीब 370 मिलियन डॉलर का हो जाएगा.

इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने इस पोर्ट का संचालन सबसे पहले 2018 के आख़िर में शुरू किया था.

इस समझौते के लिए दोनों देशों के बीच पिछले तीन साल से वार्ता चल रही थी.

भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक अपनी पहुंच को और आसान करना चाहता है.

यह बंदरगाह भारत के रणनीतिक और कूटनीतिक हितों के लिए भी बेहद अहम है.

भारत और ईरान के बीच ये समझौता ऐसे दौर के बाद हुआ है, जब दोनों देशों के बीच चाबहार पोर्ट के मुद्दे पर दूरियां देखने को मिली थीं.

भारत के जहाज़रानी मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने ईरान पहुंचकर अपने ईरानी समकक्ष के साथ इस अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

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जयशंकर से मुलाक़ात में ईरानी राष्ट्रपति का ज़ोर

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इस साल जनवरी में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने जयशंकर से मुलाक़ात की थी.

राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने इस मुलाक़ात में भारत और ईरान के बीच हुए समझौतों को लागू करने और तेज़ी लाने पर ज़ोर दिया था.

रईसी ने ये भी कहा था कि जो समझौते भारत ईरान के बीच हुए, उनमें आई देरी की क्षतिपूर्ति किए जाने की ज़रूरत है. रईसी का इशारा चाबहार की तरफ़ था.

2023 में जब पीएम नरेंद्र मोदी और ईरानी राष्ट्रपति रईसी की बात हुई थी, तब भी चाबहार का मुद्दा उठा था.

चाबहार को लेकर कहा जा रहा था है कि प्रोजेक्ट में देरी के कारण भारत से ईरान ख़ुश नहीं है.

ईरान चाहता है कि भारत इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करे. इस मामले में भारत की तुलना चीन से की जाती है कि चीन अपनी परियोजनाओं को जल्दी लागू कर देता है जबकि भारत ऐसा नहीं कर पाता है.

कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के पास पैसे और संसाधन की कमी नहीं है इसलिए वह भारी पड़ता है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भी इस पोर्ट को विकसित करने में देरी हुई.

जब भारत और ईरान के बीच ये समझौता हुआ था, तब भी अमेरिका की ओर से कड़ी आपत्ति जताई गई थी.

2023 में इब्राहिम रईसी ने चीन का दौरा किया था

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चाबहार का पाकिस्तान और चीन पर असर

चाबहार पोर्ट चीन की अरब सागर में मौजूदगी को चुनौती देने के लिहाज से भी भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है.

चीन पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहा है.

यह पोर्ट चाबहार पोर्ट से सड़क के रास्ते केवल 400 किलोमीटर दूर है जबकि समुद्र के जरिए यह दूरी महज 100 किमी ही बैठती है.

इस तरह से ग्वादर और चाबहार पोर्ट को लेकर भी भारत और चीन के बीच टक्कर है.

रणनीतिक लिहाज से भी ग्वादर पोर्ट में चीनी मौजूदगी भारत के लिए दिक्कत पैदा कर सकती है. ऐसे में चाबहार पोर्ट में अपनी मौजूदगी होना भारत के हक़ में माना जाता है.

बीबीसी से मध्य पूर्व मामलों के जानकार क़मर आग़ा ने कहा था, "भारत के साथ ईरान के ऐतिहासिक रिश्ते हैं. भारत की कोशिश होगी कि वो अच्छे रिश्ते बने रहें और चाबहार बंदरगाह का काम चलता रहे और वो आगे इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़ा रहे."

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद भारत का मध्य एशिया से सीधा संपर्क घट गया था. चाबहार के रास्ते भारत अब ज़रूरत पड़ने पर काबुल तक भी अपनी पहुँच बना पाएगा और साथ ही सेंट्रल एशियाई देशों से व्यापार में भी बढ़ोतरी हो सकती है.

पहले अफ़ग़ानिस्तान में खाद्यान्न पहुँचाने के लिए भारत को पाकिस्तान के सड़क मार्ग का इस्तेमाल करना पड़ता था.

इससे भारत को तेल और गैस के एक बड़ा बाज़ार तक पहुँच मिल जाएगी.

सामरिक दृष्टि से भी पाकिस्तान में चीन के नियंत्रण वाले ग्वादर पोर्ट के पास भारतीय मौजूदगी अहम मानी जा रही है.

साल 2019 में पहली बार इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से माल पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत आया था.

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चाबहार पोर्ट अहम क्यों है

ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी.

साल 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया था. 15 साल में किसी भारतीय पीएम का ये पहला ईरानी दौरा था.

साल 2016 में इस समझौते को मंज़ूरी मिली.

साल 2019 में पहली बार इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से माल पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत आया था.

हालांकि साल 2020 में एक ऐसा वक़्त भी आया जब ईरान के भारत को एक प्रोजेक्ट से अलग करने की रिपोर्ट्स सामने आईं.

चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए काफ़ी अहमियत रखता है.

इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार होना है.

इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती, साथ ही ईरान और रूस को भी फ़ायदा होता.

इस परियोजना के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह बहुत अहम है.

पीएम मोदी के दौरे के दौरान रेल समझौते में देरी को लेकर भी ईरान की नाराज़गी देखने को मिली थी.

दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान जब एक नए ट्रेड रूट को बनाने पर सहमति बनी थी, तब इस परियोजना के भविष्य पर सवाल उठने लगे थे.

कहा गया कि अगर ये इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर बन गया तो चाबहार पोर्ट की बहुत अहमियत नहीं रह जाएगी. इसे ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा गया था.

मगर अब भारत और ईरान के बीच चाबहार पर अहम समझौता हो गया है तो इसे रिश्तों में जमी बर्फ के पिघलने के तौर पर देखा जा रहा है.

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